कई बार ऐसा होता है कि हम अपने दिल की बात किसी से कह भी नहीं पाते और दबी जुबां बस यही सोचा करते कि,काश हम अपने दिल की बात कह गए होते,बस उन्हीं जज्बात को शब्दों में पिरोकर यहां सहेजे हुए हैं,हम हमेशा से अपनी भावनाओं को लोगों के सामने रखने से डरते आए हैं,बस ये सोचकर कि पता नहीं लोग क्या सोचेंगे...लेकिन कब तक..और आखिर में थाम लिया इस गुमनाम गलियारे का सहारा.....वैसे भी अंधेरी गलियों में लोगों का आना जाना कम होता है..लेकिन आप जो कोई भी आएंगें इस गलियारे में,तहे दिल से स्वागत एवं आभार...Anjel
शनिवार, 29 अगस्त 2009
क्या कहें तुमसे.....
तुम्हारे साथ का वो पल ख्यालों से अब तक जुदा न कर सके हैं तिनका तिनका यादों के दिल से अब तक मिटा न सके हैं चोरी छिपे मिलती वों नजरें होठों से अब तक छुपा न सके हैं कहने को तो हैं कई सारी बातें जो अब तक हम तुम्हें बता न सके......
4 टिप्पणियां:
बिलकुल कॉपी के पिछले पन्ने पर लिखी कविता जैसी लगती है ..।
बिल्कुल ही सही एहसास है गुमनाम गली ....जज्बात की......कई ऐसे एहसास होते है जो गुमनाम ही होते है और उनके गुमनाम हो जाने मे भलाई है......सुन्दर
बहुत अच्छे
एक तो आप बताने में बड़ा वक्त लगाते हैं...........
जल्दी से बताया करो न.................
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