गुरुवार, 29 मार्च 2012

तुम्हारी अदा

(अनुराग जिसे प्यार से मैं अनु कहती हूं... मेरे से रूठ गया है...कोशिश कर रही हूं ..लेकिन अभी तक उसे मना नहीं पाई हूं....अभी भी वो मेरे सामने बैठा है पर बातचीत बंद है..उसी दोस्ती पर)

तुम्हारे रूठने की हर अदा
भाती है मुझे
तुम चाहे लाख छुपा लो
तुम्हारे छुपने की अदा
भाती है मुझे
चाहे कोशिश कर लो जितनी
मुझसे दूर जाने की
तुम्हारे दूर जाने की अदा
भाती है मुझे
मेरी छोटी सी खता की
न दो इतनी बड़ी सजा
मेरे पास आने की अदा
भाती है मुझे
बस माफ कर दो एक बार 'अनु'
तुम्हारे मुस्कुराने की अदा
भाती है मुझे ।

अब तो हमेशा ही बात होगी

(रवि...यही नाम है उनका, लेकिन हम उन्हें रवि दा के नाम से बुलाते हैं, जिंदगी की इस भीड़ में अचानक हमारी मुलाकात हुई, लेकिन एक पल के लिए भी ये नहीं लगा कि ये रिश्ता नया है, बल्कि इस रिश्ते में एक अपनापन महसूस हुआ, बस उसी रिश्ते के नाम।)

जिंदगी की भीड़ में
उनसे यूं मुलाकात हुई
पल भर के लिए लगा
ठहर गई रात
अब तो फिर कभी नहीं बात होगी

वक्त के घरौंदों में मशगूल
हम बेफिक्र हो कर चल दिए
लेकिन कसक तो थी
ठहर गई रात
अब तो फिर कभी नहीं बात होगी

रिशतों की दुनिया में
हमारी किस्मत थी मेहरबां
सोचा न था मिल गए आप
ठहर गई रात
लेकिन अब तो हमेशा ही बात होगी