गुरुवार, 26 अगस्त 2010

हमने तुमको याद किया .....

(कहते हैं जब दो दिल का मिलना हो तो इत्तफाक ही सही मिलते जरूर हैं.....कभी किसी को दिल से याद करो और उसी दरम्यान याद आने वाला शख्स तुम्हें याद करे तो ........)

तुम्हारी यादों से निकल कर
कुछ दूर तलक चले ही थे हम
और तुम्हारी परछाई ने
फिर वापस आने को मजबूर किया
तुम्हें भूलकर दो कदम निकले ही थे हम
और फिर हमारे दिल ने लौटने पर मजबूर किया.........................

सोमवार, 23 अगस्त 2010

दिल को कैसे समझाएं.....

( किसी को भूलना जिससे आप बहुत प्यार करते हो...लेकिन कभी कभी जिंदगी ऐसी करवट लेती है कि आपको मजबूर होकर भूलाना पड़े तो कितना मुश्किल है....)

दिल को कैसे मनाएं
दिल को कैसे समझाएं
तेरी याद जाती नहीं
तेरा प्यार हटता ही नहीं
तुम्हें भूल पाना अब हमारे बस में नहीं.......

तुम कहते हो भूल जाऊं तुम्हें
पर तुम चाहते नहीं मैं भूला दूं तुम्हें
तुम कहते दूर हो जाऊं तुझसे
पर तुम चाहते नहीं दूर हो जाऊं तुमसे
न जाने ये कैसी कसमकश है
जब दिल चाहता कुछ औऱ है
पर करना पड़ता कुछ औऱ है...........


दिल को क्या बताएं
दिल को क्या सुनाएं
ये दिल तो दिल के हाथों खुद मजबूर है
जो कहता है मुझसे
तुम्हें भूल पाना अब हमारे बस में नहीं है....

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

न जाने कहां चले गए थे हम

कहां चले गए थे हम
एहसासों की दुनिया से दूर
जिंदगी की हकीकत को
जानने की कोशिश में
भटक गए थे कहीं दूर
हां हमें खुद भी नहीं पता
कहां चले गए थे हम

कागज और कलम से नाता तोड़
एहसास और जज्बात को छोड़
कोई ख्वाब नहीं, और न कोई ख्वाहिश
बगैर आप सभों का साथ
चले थे जिंदगी को जीने
पता नहीं कहां चले गए थे हम

रास न आई आपके बगैर ये जिंदगी
फिर से आ लौटे
हम सबकी दुनिया में
फिर होंगे खटटे मीठे एहसास
तो दिल के कोने में दबे दर्द का इकबाल ए बयां
हां हम लौट आए हैं
उसी गुमनाम गली में
जहां गुमनाम होकर भी
एक अपनी पहचान है।

(हम बहुत दिनों तक आप सभी से दूर रहे....याद तो आई आप सबकी ...पर वक्त न दे पाने के गुनहगार हैं ...हम...बस बहुत दिनों के बाद एक बार फिर से मुलाकात पर ये दिल के एहसास......)

रविवार, 24 जनवरी 2010

अच्छा लगता है मुझको...

(कभी कभी जिंदगी में कुछ ऐसी चीजें होती हैं जो हमें अच्छी लगती है बस उसी पर ये नजराना)

तेरा पास आना
पास आकर के गुजर जाना
अच्छा लगता है मुझको ।
तेरा नजर मिलाना
नजरें मिलाके नजर चुरा जाना
अच्छा लगता है मुझको ।
तेरा मुस्कुराना
मुस्कुराके चले जाना
अच्छा लगता है मुझको ।
तेरा दूर जाना
दूर जाके प्यार अपना जताना
अच्छा लगता है मुझको ।
तुम्हें बहुत कुछ है अभी बताना
कुछ नहीं बता के आंखों से कह देना
अच्छा लगता है मुझको ।
तुम्हारा मेरा कोई न होना
कुछ न होकर भी बहुत कुछ होना
अच्छा लगता है मुझको।
बस अब और क्या कहूं
सब बातों को सोचके
सोचकर वक़्त बिताना
अच्छा लगता है मुझको।

इस रिश्ते को क्या नाम दूं ?

(कुछ रिश्तों को लेकर अनजान हूं मैं, समझ नहीं आता रिश्तों से जुड़े हर डोर को किस किस नामसे पुकारुं, कभी कभी ऐसा होता है कुछ लोग बनने वाले हर रिश्ते से भी ज्यादा ओहदे के होते हैं तो कुछ मिले रिश्तों के नाम से भी कम की अहमियत रखते हैं, और कुछ तो ऐसे होते हैं जिन्हे रिश्तों की डोर में बांधना मुश्किल हो जाता है और तब जब रिश्ता का नाम समझ में न आए।)

एक किताब है मेरी जिंदगी
जिसमें हैं प्यार के दो लब्ज
नहीं पता मुझे,उन लब्जों को
रिश्तों का कौन सा नाम दूं
एक कहानी की शुरुआत है
तो दूसरा कहानी का अंत
लेकिन जिसने पिरोया है
उन शब्दों से बनती है
एक अनजान परिभाषा
दिल को समझाया कई बार
जिंदगी एक अक्षर पर शुरु नहीं
और न ही एक अक्षर पर खत्म
ये तो एक पूरी किताब है
जिसपर है कई शब्दों का मेल
तो जगह जगह पर लफ्जों का खेल
दिल तो कहता है हमसे बार बार
भावनाओं की दरिया में मत बह
वरना जिंदगी की हर हकीकत से बेखबर
डूब जाएगी तेरी कश्ती
थाम ले तू सच्चाई को
जान ले तू हर डोर को
हर रुख का सामना कर
अपने मन की माना कर
इसे ही तो कहते हैं रिश्तों की दुनिया
जो शुरु कहीं से होती है
तो खत्म कहीं और पर।