सोमवार, 17 अगस्त 2009

कुछ कहना है तुमसे....

कहना तो बहुत कुछ है तुमसे
पर शायद तुम सुनना न चाहो
जानना तो बहुत कुछ है तुमसे
पर शायद तुम बताना न चाहो

काश,आंखों की जुबां समझ सकते
यूं तुम्हारी आवाज को न तरसते

जाना तो है बहुत दूर तलक तुमसे
पर शायद तुम जाना न चाहो
कुछ वादा लेना चाहते हैं तुमसे
पर शायद तुम निभाना न चाहो

काश,तुम मेरे पास होते
यूं तुम्हारे साथ को नहीं तरसते

देना तो बहुत कुछ है तुम्हें
पर तुम शायद मांगना न चाहो
लेना तो बहुत कुछ है तुमसे
पर शायद तुम देना न चाहो

काश एक खता न हुई होती हमसे
यूं तुम्हारी नज़र-ए-करम को नहीं तरसते।
(नज़र-ए-करम----प्यार भरी निगाहों)

2 टिप्‍पणियां:

sanjay vyas ने कहा…

हम सब बहुत कुछ अनकहा समेटे होते है. सरल और प्रभावी.

Unknown ने कहा…

pataa hi nahin chalaa
kavita k sath yatraa kartaa hua main kitnaa aage
nikal gaya..............lauta toh dekha aapki kavita vahin khadi muskura rahi hai...mano kah rahi hai
ki mujhse aage nahin mere saath chalo....
kyonki bahut kuchh kahnaa hai tumse.....
waah
waah
umda kavita
badhaai !