सोमवार, 9 अप्रैल 2012

प्यार तो फिर भी है

(जब कोई प्यार के आंसुओं की कद्र नहीं करता)

लफ्जों में छुपा दर्द
बना कतरा आंसू का
तुमको लगा ऐसा
पानी की बूंदें हैं
सलीके से बह जाने दो
अब नहीं है कोई ख्वाब
हर आरजू में तुमको देखा
निगाहों को नहीं अब
किसी अपनों की तलाश
मोहब्बत ने छोड़ा हाथ
गमों ने अपनाया साथ
अल्फाजों को चुनती हूं
दर्द-ए-बयां के लिए
काश ये न कहना पड़े
न तुम आते
न प्यार होता
इन आंखों को कभी
तेरा  न इंतजार होता ।

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