गुरुवार, 29 मार्च 2012

तुम्हारी अदा

(अनुराग जिसे प्यार से मैं अनु कहती हूं... मेरे से रूठ गया है...कोशिश कर रही हूं ..लेकिन अभी तक उसे मना नहीं पाई हूं....अभी भी वो मेरे सामने बैठा है पर बातचीत बंद है..उसी दोस्ती पर)

तुम्हारे रूठने की हर अदा
भाती है मुझे
तुम चाहे लाख छुपा लो
तुम्हारे छुपने की अदा
भाती है मुझे
चाहे कोशिश कर लो जितनी
मुझसे दूर जाने की
तुम्हारे दूर जाने की अदा
भाती है मुझे
मेरी छोटी सी खता की
न दो इतनी बड़ी सजा
मेरे पास आने की अदा
भाती है मुझे
बस माफ कर दो एक बार 'अनु'
तुम्हारे मुस्कुराने की अदा
भाती है मुझे ।

2 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

अच्छा लगा यूँ रूठना और मानना .

Anjelanima_एंजेला एनिमा ने कहा…

हमारी अदा की तारीफ करने के लिए शुक्रिया मिथिलेश जी ।