गुरुवार, 5 अगस्त 2010

न जाने कहां चले गए थे हम

कहां चले गए थे हम
एहसासों की दुनिया से दूर
जिंदगी की हकीकत को
जानने की कोशिश में
भटक गए थे कहीं दूर
हां हमें खुद भी नहीं पता
कहां चले गए थे हम

कागज और कलम से नाता तोड़
एहसास और जज्बात को छोड़
कोई ख्वाब नहीं, और न कोई ख्वाहिश
बगैर आप सभों का साथ
चले थे जिंदगी को जीने
पता नहीं कहां चले गए थे हम

रास न आई आपके बगैर ये जिंदगी
फिर से आ लौटे
हम सबकी दुनिया में
फिर होंगे खटटे मीठे एहसास
तो दिल के कोने में दबे दर्द का इकबाल ए बयां
हां हम लौट आए हैं
उसी गुमनाम गली में
जहां गुमनाम होकर भी
एक अपनी पहचान है।

(हम बहुत दिनों तक आप सभी से दूर रहे....याद तो आई आप सबकी ...पर वक्त न दे पाने के गुनहगार हैं ...हम...बस बहुत दिनों के बाद एक बार फिर से मुलाकात पर ये दिल के एहसास......)

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