(कहते हैं जब दो दिल का मिलना हो तो इत्तफाक ही सही मिलते जरूर हैं.....कभी किसी को दिल से याद करो और उसी दरम्यान याद आने वाला शख्स तुम्हें याद करे तो ........)
तुम्हारी यादों से निकल कर
कुछ दूर तलक चले ही थे हम
और तुम्हारी परछाई ने
फिर वापस आने को मजबूर किया
तुम्हें भूलकर दो कदम निकले ही थे हम
और फिर हमारे दिल ने लौटने पर मजबूर किया.........................
कई बार ऐसा होता है कि हम अपने दिल की बात किसी से कह भी नहीं पाते और दबी जुबां बस यही सोचा करते कि,काश हम अपने दिल की बात कह गए होते,बस उन्हीं जज्बात को शब्दों में पिरोकर यहां सहेजे हुए हैं,हम हमेशा से अपनी भावनाओं को लोगों के सामने रखने से डरते आए हैं,बस ये सोचकर कि पता नहीं लोग क्या सोचेंगे...लेकिन कब तक..और आखिर में थाम लिया इस गुमनाम गलियारे का सहारा.....वैसे भी अंधेरी गलियों में लोगों का आना जाना कम होता है..लेकिन आप जो कोई भी आएंगें इस गलियारे में,तहे दिल से स्वागत एवं आभार...Anjel
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
सोमवार, 23 अगस्त 2010
दिल को कैसे समझाएं.....
( किसी को भूलना जिससे आप बहुत प्यार करते हो...लेकिन कभी कभी जिंदगी ऐसी करवट लेती है कि आपको मजबूर होकर भूलाना पड़े तो कितना मुश्किल है....)
दिल को कैसे मनाएं
दिल को कैसे समझाएं
तेरी याद जाती नहीं
तेरा प्यार हटता ही नहीं
तुम्हें भूल पाना अब हमारे बस में नहीं.......
तुम कहते हो भूल जाऊं तुम्हें
पर तुम चाहते नहीं मैं भूला दूं तुम्हें
तुम कहते दूर हो जाऊं तुझसे
पर तुम चाहते नहीं दूर हो जाऊं तुमसे
न जाने ये कैसी कसमकश है
जब दिल चाहता कुछ औऱ है
पर करना पड़ता कुछ औऱ है...........
दिल को क्या बताएं
दिल को क्या सुनाएं
ये दिल तो दिल के हाथों खुद मजबूर है
जो कहता है मुझसे
तुम्हें भूल पाना अब हमारे बस में नहीं है....
दिल को कैसे मनाएं
दिल को कैसे समझाएं
तेरी याद जाती नहीं
तेरा प्यार हटता ही नहीं
तुम्हें भूल पाना अब हमारे बस में नहीं.......
तुम कहते हो भूल जाऊं तुम्हें
पर तुम चाहते नहीं मैं भूला दूं तुम्हें
तुम कहते दूर हो जाऊं तुझसे
पर तुम चाहते नहीं दूर हो जाऊं तुमसे
न जाने ये कैसी कसमकश है
जब दिल चाहता कुछ औऱ है
पर करना पड़ता कुछ औऱ है...........
दिल को क्या बताएं
दिल को क्या सुनाएं
ये दिल तो दिल के हाथों खुद मजबूर है
जो कहता है मुझसे
तुम्हें भूल पाना अब हमारे बस में नहीं है....
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
न जाने कहां चले गए थे हम
कहां चले गए थे हम
एहसासों की दुनिया से दूर
जिंदगी की हकीकत को
जानने की कोशिश में
भटक गए थे कहीं दूर
हां हमें खुद भी नहीं पता
कहां चले गए थे हम
कागज और कलम से नाता तोड़
एहसास और जज्बात को छोड़
कोई ख्वाब नहीं, और न कोई ख्वाहिश
बगैर आप सभों का साथ
चले थे जिंदगी को जीने
पता नहीं कहां चले गए थे हम
रास न आई आपके बगैर ये जिंदगी
फिर से आ लौटे
हम सबकी दुनिया में
फिर होंगे खटटे मीठे एहसास
तो दिल के कोने में दबे दर्द का इकबाल ए बयां
हां हम लौट आए हैं
उसी गुमनाम गली में
जहां गुमनाम होकर भी
एक अपनी पहचान है।
(हम बहुत दिनों तक आप सभी से दूर रहे....याद तो आई आप सबकी ...पर वक्त न दे पाने के गुनहगार हैं ...हम...बस बहुत दिनों के बाद एक बार फिर से मुलाकात पर ये दिल के एहसास......)
एहसासों की दुनिया से दूर
जिंदगी की हकीकत को
जानने की कोशिश में
भटक गए थे कहीं दूर
हां हमें खुद भी नहीं पता
कहां चले गए थे हम
कागज और कलम से नाता तोड़
एहसास और जज्बात को छोड़
कोई ख्वाब नहीं, और न कोई ख्वाहिश
बगैर आप सभों का साथ
चले थे जिंदगी को जीने
पता नहीं कहां चले गए थे हम
रास न आई आपके बगैर ये जिंदगी
फिर से आ लौटे
हम सबकी दुनिया में
फिर होंगे खटटे मीठे एहसास
तो दिल के कोने में दबे दर्द का इकबाल ए बयां
हां हम लौट आए हैं
उसी गुमनाम गली में
जहां गुमनाम होकर भी
एक अपनी पहचान है।
(हम बहुत दिनों तक आप सभी से दूर रहे....याद तो आई आप सबकी ...पर वक्त न दे पाने के गुनहगार हैं ...हम...बस बहुत दिनों के बाद एक बार फिर से मुलाकात पर ये दिल के एहसास......)
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