ऐसा लगता है मुझे
समझ न सके हैं दुनिया को अबतक
क्योंकि हंसते हंसते रोने लगते हैं
तो कभी रोते रोते हंस पड़ते
नहीं पता कि कौन कब दगा दे जाए
सफर में साथ चल रहा है कोई आपके साथ
पराया हो या हो अपना
पता नहीं कब हाथ छोड़ जाए
साथ बैठकर बातें हो रही है
और अचानक झगड़ा हो जाए
जहां सजी थी महफिल
पता नहीं कब जंग का मैदान बन जाए
अच्छे खासे मुस्कुरा रहे हैं
और कोई आपको दो बात कह जाए
फूट पड़ता गुस्सा और निकल पड़ती है गाली
कौन दोस्त कौन दुशमन पता ही नहीं चलता
शायद इसी को इसीलिए कहते हैं जिन्दगी
जहां तुम कुछ समझ सको ,जहां कुछ समझा सको
तो कभी सवालों में उलझ जाओ
तो कभी जवाबों में ही उलझ जाओ
2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया.
बहुत अरसे बाद आप आईं है.स्वागत.अच्छी रचना.
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