(हर कोई मुझसे कहता कि मैं बहुत कमजोर हूं। दिल को दुखाने वाली हर छोटी छोटी बातों को लेकर रो पड़ती हूं। मेरे दिल के करीब रहनेवाले सभी यही कहते कि मैं बेवकूफ हूं जो हर किसी के लिए आंसू बहाती हूं। उनका कहना है कि मुझे उनके लिए आंसू बहाना चाहिए जो मेरे अपने हों । लेकिन मैं ये कैसे साबित करुं कि चाहे कोई वो मेरे अपने हों या पराए जब भी मेरा दिल दुखता है तो आंसू अपने आप झरने लगते हैं जिनको चाहकर भी मैं रोक नहीं पाती।)
कौन कहता है कि रोना हमें पसंद है
हां हमें रोना पसंद है, पर ये आंसू नहीं
लेकिन कमबख्त नालायक आंसू
हर छोटी छोटी बातों का संदेशा ले आती
मेरे मासूम से चेहरे को और भी दर्द दे जाती
ये बेमतलबी आंसू हर जगह मुझे कमजोर बनाते हैं
लोगों को बोलने का मौका मिल जाता
रोनेवाली बात ही नहीं फिर तुम रोती क्यों हो
अब मैं हर किसी को कैसे समझाऊं
दर्द देनेवाली हर छोटी बात
मेरे लिए एक बड़ी बात है
जो मेरे जेहन से होकर दिल को छूती है
और दुख के दरिया में आंसूओं का सागर
मेरे चेहरे पर आ मिलता है......
कई बार ऐसा होता है कि हम अपने दिल की बात किसी से कह भी नहीं पाते और दबी जुबां बस यही सोचा करते कि,काश हम अपने दिल की बात कह गए होते,बस उन्हीं जज्बात को शब्दों में पिरोकर यहां सहेजे हुए हैं,हम हमेशा से अपनी भावनाओं को लोगों के सामने रखने से डरते आए हैं,बस ये सोचकर कि पता नहीं लोग क्या सोचेंगे...लेकिन कब तक..और आखिर में थाम लिया इस गुमनाम गलियारे का सहारा.....वैसे भी अंधेरी गलियों में लोगों का आना जाना कम होता है..लेकिन आप जो कोई भी आएंगें इस गलियारे में,तहे दिल से स्वागत एवं आभार...Anjel
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
समझना अभी भी बाकी है....
ऐसा लगता है मुझे
समझ न सके हैं दुनिया को अबतक
क्योंकि हंसते हंसते रोने लगते हैं
तो कभी रोते रोते हंस पड़ते
नहीं पता कि कौन कब दगा दे जाए
सफर में साथ चल रहा है कोई आपके साथ
पराया हो या हो अपना
पता नहीं कब हाथ छोड़ जाए
साथ बैठकर बातें हो रही है
और अचानक झगड़ा हो जाए
जहां सजी थी महफिल
पता नहीं कब जंग का मैदान बन जाए
अच्छे खासे मुस्कुरा रहे हैं
और कोई आपको दो बात कह जाए
फूट पड़ता गुस्सा और निकल पड़ती है गाली
कौन दोस्त कौन दुशमन पता ही नहीं चलता
शायद इसी को इसीलिए कहते हैं जिन्दगी
जहां तुम कुछ समझ सको ,जहां कुछ समझा सको
तो कभी सवालों में उलझ जाओ
तो कभी जवाबों में ही उलझ जाओ
समझ न सके हैं दुनिया को अबतक
क्योंकि हंसते हंसते रोने लगते हैं
तो कभी रोते रोते हंस पड़ते
नहीं पता कि कौन कब दगा दे जाए
सफर में साथ चल रहा है कोई आपके साथ
पराया हो या हो अपना
पता नहीं कब हाथ छोड़ जाए
साथ बैठकर बातें हो रही है
और अचानक झगड़ा हो जाए
जहां सजी थी महफिल
पता नहीं कब जंग का मैदान बन जाए
अच्छे खासे मुस्कुरा रहे हैं
और कोई आपको दो बात कह जाए
फूट पड़ता गुस्सा और निकल पड़ती है गाली
कौन दोस्त कौन दुशमन पता ही नहीं चलता
शायद इसी को इसीलिए कहते हैं जिन्दगी
जहां तुम कुछ समझ सको ,जहां कुछ समझा सको
तो कभी सवालों में उलझ जाओ
तो कभी जवाबों में ही उलझ जाओ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)