गुरुवार, 23 जुलाई 2009

बिन तेरे क्या है जीना.....

( तुमसे हम कोई वादा कर नहीं सकते...गर वादा कर भी लिया तो निभा नहीं सकते। ये जिंदगी भी कितनी अजीब है ,इतनी अजीब कि कभी-कभी सोचने का हक भी नहीं रख सकते। उन सोच को एक एहसास में बदल दिया है, बस उस दरम्यान की कुछेक लब्ज...)

बिन तेरे क्या है जीना ये कहना आसान है लेकिन निभाना मुश्किल । जब भी ये सोचते हैं तब भी मन बोझिल हो जाता है । क्योंकि हम ये सिर्फ एहसास कर सकते हैं लेकिन इतनी हिम्मत नहीं कि हम ‘उन्हें’ ये कह सके । क्योंकि जिंदगी हर तरह से खूबसूरत है। चाहे क्यों न जितने भी दर्द मिले हों, हां हो सकता है दर्द आंसूओं में न छलके हों लेकिन ये तो सच है जिंदगी चाहे जितना भी लिबास ओढ़ ले हर लिबास में खबूसूरत लगती है। जिंदगी से कोई शिकायत नहीं कि वो हमें क्यों नहीं मिले, और मिले भी तो इस तरह से कि हमारे हो न सके। बस इसी के दौरान दिल ने चाहा...तो लिख दिया .....

तुम नहीं मिले तो प्यार में कुछ रंग कम पड़ गए,
तुम मिलते तो शायद जिंदंगी और भी रंगीन हो जाती।
तुम्हारा रंग न सही कोई और रंग होगा
उन्हीं रंगों में तुम्हारे होने का एहसास होगा
न चाहते हुए भी उन रंगों में रंगना होगा
दिल तो कहता बिन तेरे क्या है जीना
पर जिंदगी कहती बस ‘गुमनाम’
तुमको है सिर्फ उनके बिना जीना......

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